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18 साल की कड़ी मेहनत और अस्वीकृति के बाद, एक व्यक्ति का क्रांतिकारी इंजन सब कुछ बदलने को तैयार है
एक ऐसी दुनिया में जहाँ बड़ी ऑटोमोटिव कंपनियाँ एक लीटर पेट्रोल से कुछ और किलोमीटर निकालने के लिए अरबों खर्च कर देती हैं, वहीं प्रयागराज के एक व्यक्ति ने कुछ अकल्पनीय हासिल कर लिया है। मिलिए शैलेंद्र कुमार सिंह गौर से, एक ऐसे आविष्कारक, जिन्होंने 18 साल की अथक मेहनत और अनगिनत बलिदानों के बाद, एक सामान्य मोटरसाइकिल को संशोधित करके प्रति लीटर 176 किलोमीटर का आश्चर्यजनक माइलेज हासिल किया है। यह सिर्फ एक अपग्रेड नहीं है; यह एक क्रांतिकारी छलांग है जो ईंधन दक्षता के भविष्य को बदल सकती है।
एक विचार की चिंगारी: एक कमी बनी मिशन
यह सफर 2006 में शुरू हुआ। अपना स्कूटर ठीक करवाते समय, शैलेंद्र ने इंजन के क्रैंकशाफ्ट और पिस्टन के काम करने के तरीके में एक मूलभूत डिज़ाइन दोष देखा। उन्होंने महसूस किया कि काफी मात्रा में शक्ति बर्बाद हो रही थी। पारंपरिक इंजनों में, जब पिस्टन अपने उच्चतम बिंदु (टॉप डेड सेंटर या TDC) पर पहुँचता है, तो दहन ऊर्जा को पूरी तरह से गति में बदलने से पहले थोड़ी देर होती है। इस एक सेकंड के अंश में, कीमती ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
उनका क्रांतिकारी विचार इस कमी को दूर करना था। शैलेंद्र ने एक नई डिज़ाइन की कल्पना की जहाँ TDC को 0 डिग्री से 60 डिग्री पर स्थानांतरित कर दिया गया। यह बदलाव यह सुनिश्चित करता है कि जैसे ही ईंधन जलता है, पिस्टन पहले से ही क्रैंकशाफ्ट में अधिकतम बल स्थानांतरित करने की स्थिति में होता है, जिससे शक्ति का क्षय बहुत कम हो जाता है और दक्षता बढ़ जाती है।
संघर्ष और बलिदान की एक कठिन 18 साल की यात्रा
इस शानदार अवधारणा के साथ, शैलेंद्र का संघर्ष शुरू हुआ। 2007 में, उन्होंने टाटा मोटर्स जैसी बड़ी कंपनियों और IIT कानपुर और IIT दिल्ली जैसे शीर्ष संस्थानों से संपर्क किया, इस उम्मीद में कि उन्हें समर्थन मिलेगा। लेकिन वे जहाँ भी गए, उन्हें संदेह और अस्वीकृति का सामना करना पड़ा। विशेषज्ञों ने उन्हें बताया कि उनका विचार असंभव था। एक संस्थान ने तो उन्हें लिखित में दे दिया कि उनके वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।
लेकिन शैलेंद्र ने हार मानने से इनकार कर दिया। 18 लंबे वर्षों तक, उन्होंने अपनी पूरी ताकत अपने शोध में झोंक दी। उन्होंने अपनी जमीन बेच दी, दोस्तों और रिश्तेदारों से कर्ज लिया, और एक समय ऐसा भी आया जब वे 15 महीने तक अपना किराया भी नहीं दे पाए। आर्थिक तंगी बहुत ज़्यादा थी; वे भीषण गर्मी में सालों तक बिना कूलर के रहे, अपने प्रोजेक्ट के लिए एक-एक पैसा बचाते रहे। उनकी बेटी उनके साथ खड़ी रहीं, उनके शोध में उनकी सहायता करती रहीं, जबकि वे हर दिन सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक अपने इंजन को बेहतर बनाने के लिए मेहनत करते रहे।
मीठी जीत: 176 KMPL हासिल किया
अनगिनत असफलताओं, टूटे हुए पुर्जों और बिना सोई रातों के बाद, उनकी लगन रंग लाई। उन्होंने कई बाइकों पर प्रयोग किए। एक संशोधित बजाज प्लेटिना ने 120 kmpl का माइलेज दिया। एक और बाइक 126 kmpl तक पहुँची। अंत में, एक तीसरी संशोधित मोटरसाइकिल पर सड़क परीक्षण के दौरान, उन्होंने प्रति लीटर 176 किलोमीटर का अविश्वसनीय मील का पत्थर हासिल किया।
पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए, शैलेंद्र ने हमेशा अपने परीक्षण तीसरे पक्ष से सत्यापित करवाए। आज, उनके पास अपनी इस अभूतपूर्व तकनीक के दो पेटेंट हैं।
बड़ी तस्वीर: भारत के लिए एक गेम-चेंजर
यह सिर्फ एक व्यक्ति के जुनून की कहानी नहीं है; यह पूरे देश के लिए एक संभावित गेम-चेंजर है। अगर इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है, तो शैलेंद्र का अनुमान है कि यह भारत के विशाल पेट्रोलियम आयात बिल को 8 लाख करोड़ रुपये तक कम कर सकता है। इसके अलावा, उनका इंजन अविश्वसनीय रूप से स्वच्छ है और अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना में बहुत कम प्रदूषण उत्सर्जित करता है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक बहुत बड़ा कदम हो सकता है।
आगे क्या?
63 साल की उम्र में भी, शैलेंद्र का जोश अदम्य है। उनका अगला सपना समुद्र से असीमित, कम लागत वाली बिजली बनाने के लिए एक प्रोटोटाइप विकसित करना है, जिसमें ऊर्जा रूपांतरण के उन्हीं सिद्धांतों का उपयोग किया जाएगा। वे अपने जीवन भर के काम को समाज को देने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।
सामाजिक संदेश: शैलेंद्र कुमार सिंह गौर की कहानी एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि सपने पंखों से नहीं, बल्कि साहस से पूरे होते हैं। उनकी यात्रा हमें सिखाती है कि नवाचार कहीं से भी आ सकता है, और जुनून, जब दृढ़ता के साथ जुड़ जाता है, तो किसी भी बाधा को दूर कर सकता है। अब समय आ गया है कि हम उन जैसे प्रतिभाशाली लोगों को पहचानें और उनका समर्थन करें जो चुपचाप काम करते हैं, प्रसिद्धि के लिए नहीं, बल्कि समाज की भलाई के लिए।






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