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भारत रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता की दिशा में लगातार महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, विशेष रूप से स्वदेशी जेट इंजनों के विकास में। कावेरी इंजन परियोजना, जिसकी शुरुआत 1980 के दशक के अंत में हुई थी, का उद्देश्य हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस को शक्ति प्रदान करना था। हालांकि, तकनीकी चुनौतियों और प्रदर्शन में समस्याओं के कारण इस इंजन को 2008 में तेजस कार्यक्रम के लिए अनुपयुक्त घोषित कर दिया गया था।
विफलताओं के बावजूद, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और इसकी गैस टरबाइन अनुसंधान स्थापना (GTRE) ने कावेरी इंजन को परिष्कृत करने का कार्य जारी रखा। दिसंबर 2024 में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि तब हासिल हुई जब कावेरी इंजन को इन-फ्लाइट परीक्षण के लिए मंजूरी मिल गई, जो भारत के एयरोस्पेस क्षेत्र में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा गया।
वर्तमान में कावेरी इंजन लगभग 49-51 किलो न्यूटन (kN) का थ्रस्ट उत्पन्न करता है, जो कि घातक स्टील्थ यूसीएवी (Ghatak Stealth UCAV) जैसे मानवरहित हवाई वाहनों के लिए उपयुक्त है। हालांकि, मानव-संचालित लड़ाकू विमानों जैसे तेजस Mk2 के लिए एक अधिक शक्तिशाली इंजन की आवश्यकता है। यही कारण है कि कावेरी 2.0 के विकास की दिशा में कार्य हो रहा है, जिसका लक्ष्य 90 kN का थ्रस्ट प्राप्त करना है।
GTRE पुराने तेजस एयरफ्रेम पर कावेरी इंजन की क्षमता का परीक्षण करने की योजना बना रहा है। ये परीक्षण प्रदर्शन से जुड़ा महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करने के लिए आवश्यक हैं, जो कावेरी 2.0 इंजन के विकास में सहायक होगा। कावेरी इंजन का गैर-अफ्टरबर्निंग संस्करण भी उच्च ऊंचाई पर परीक्षण के लिए रूस भेजा गया है, जहां लगभग 25 घंटे के परीक्षण अभी शेष हैं।
साथ ही, भारत की एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) ने तेजस Mk2 को शक्ति देने के लिए जनरल इलेक्ट्रिक का F414-GE-INS6 इंजन चुना है। अक्टूबर 2010 में 99 इंजनों के लिए एक समझौता हुआ था, जिसमें भारत में तकनीकी स्थानांतरण (ToT) के तहत संयुक्त उत्पादन की योजना भी शामिल है।
हालांकि दीर्घकालिक लक्ष्य एक पूर्णतः स्वदेशी इंजन विकसित करना ही है। इसी संदर्भ में, फ्रांस ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे में ऑफसेट समझौतों के तहत भारत को कावेरी इंजन परियोजना को पुनर्जीवित करने में सहायता की पेशकश की है। फ्रांसीसी सहयोग से एक उन्नत कावेरी इंजन, जो 90 kN थ्रस्ट देने में सक्षम हो, भविष्य के तेजस संस्करणों को शक्ति प्रदान कर सकता है।
कावेरी इंजन के विकास में कई चुनौतियाँ भी रही हैं। DRDO प्रमुख डॉ. समीर वी. कामत ने इंजन विकास में हुई पिछली गलतियों को स्वीकार किया है और यह भी कहा कि अगली पीढ़ी के उच्च थ्रस्ट इंजनों के सह-विकास के लिए वैश्विक साझेदारियों का महत्व बहुत अधिक है। इस दिशा में सफ्रान (Safran), रोल्स-रॉयस (Rolls-Royce) और जनरल इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों के साथ सहयोग की संभावना पर विचार किया जा रहा है, ताकि भारत की इंजन विकास क्षमता को तेज़ी से आगे बढ़ाया जा सके।
कावेरी इंजन परियोजना को लेकर जनता का समर्थन भी बढ़ रहा है। सोशल मीडिया पर #FundKaveriEngine अभियान को काफी लोकप्रियता मिल रही है। नागरिकों, रक्षा विशेषज्ञों और एविएशन के शौकीनों द्वारा भारत सरकार से अनुरोध किया जा रहा है कि स्वदेशी जेट इंजन के विकास को प्राथमिकता दी जाए और इसके लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएं। इसे विदेशी तकनीक पर निर्भरता को कम करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
अस्वीकरण: यह लेख सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी पर आधारित है और भारत के स्वदेशी जेट इंजन विकास प्रयासों का एक सामान्य अवलोकन प्रस्तुत करता है। लेख में उल्लिखित विवरण समय के साथ परियोजनाओं की प्रगति के अनुसार बदल सकते हैं। इस लेख का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, संगठन या देश की आलोचना करना नहीं है, बल्कि भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हो रहे विकास के बारे में पाठकों को सूचित करना है।
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