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पृष्ठभूमि और व्यक्तिगत जड़ें
1951 में दिल्ली के पटपड़गंज में जन्मे आलोक सागर एक शिक्षित परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता एक आईआरएस अधिकारी थे, जबकि उनकी मां दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस में भौतिकी पढ़ाती थीं। उनके भाई बाद में आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर बने।
शैक्षणिक यात्रा
- बी.टेक और एम.टेक – आईआईटी दिल्ली (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग)
- पीएचडी – यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन, टेक्सास, अमेरिका
प्रतिष्ठित करियर
पीएचडी पूरी करने के बाद आलोक सागर 1980 में भारत लौटे और आईआईटी दिल्ली में पढ़ाना शुरू किया। उनके छात्रों में एक नाम था – रघुराम राजन, जो आगे चलकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर बने।
जीवन बदलने वाला निर्णय और त्याग
एक क्रांतिकारी मोड़ (1982)
सिर्फ दो वर्षों की शिक्षकीय सेवा के बाद, उन्होंने आईआईटी दिल्ली से इस्तीफा दे दिया और अपना जीवन मध्य प्रदेश के बैतूल और होशंगाबाद जिलों की आदिवासी बस्तियों और कोचामू गांव के कल्याण को समर्पित कर दिया।
सरल जीवनशैली और न्यूनतमवाद
आलोक सागर ने जनजातीय जीवन को अपनाया—उन्होंने उनकी बोलियों को सीखा, बेहद साधारण वस्त्र (सिर्फ तीन कुर्ते), परिवहन का साधन सिर्फ एक साइकिल, अत्यंत सीमित निजी वस्तुएं
मिशन और जन-सक्रियता
‘श्रमिक आदिवासी संगठन’ के माध्यम से उन्होंने निम्नलिखित कार्यों में योगदान दिया:
- पर्यावरणीय पुनर्स्थापन: 50,000 से अधिक पेड़ों का रोपण
- बीज वितरण: रोजाना 60 किलोमीटर साइकिल चलाकर बीज बांटना
- महिला अधिकार और पर्यावरण संरक्षण: सक्रिय समर्थन और जागरूकता अभियान
वीरता के पल और प्रेरक घटनाएं
- रहस्य का खुलासा: कई वर्षों तक गांव के लोग भी उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि से अनजान थे। स्थानीय चुनावों के दौरान अधिकारियों ने उन्हें “बाहरी” मानते हुए गांव छोड़ने को कहा। तब उन्होंने अपनी पीएचडी की डिग्री प्रस्तुत की, जिससे सभी चौंक गए।
- रोचक तथ्य: अपनी अकादमिक श्रेष्ठता के बावजूद वे मजाक में कहते हैं कि “लोग डिग्रियों को अधिक महत्व देते हैं, दिल और कर्म को नहीं।”
- हल्का-फुल्का पल: उनके सहयोगी और सामाजिक कार्यकर्ता अनुराग मोदी ने एक बार कहा – “वो वही करते हैं जो कहते हैं और उसी में विश्वास करते हैं।” यह आलोक सागर की सत्यनिष्ठा को दर्शाता है।
उपलब्धियां और प्रभाव
- हरित क्रांति: 50,000 से अधिक पेड़ लगाकर उन्होंने मृदा की उर्वरता, जल संरक्षण और जैव विविधता को समृद्ध किया।
- बीज वितरण योजना: स्थानीय जनजातीय परिवारों को परंपरागत पौधों की खेती के लिए बीज प्रदान कर आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया।
- सामाजिक सशक्तिकरण: महिलाओं और जनजातीय अधिकारों के लिए ‘श्रमिक आदिवासी संगठन’ के माध्यम से निरंतर कार्य किया।
- मानवता के लिए आदर्श: उन्होंने भौतिक प्रतिष्ठा को ठुकरा कर, जमीनी स्तर पर कार्य कर एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जो “सफलता” की पारंपरिक परिभाषाओं को चुनौती देता है।
- पद्म सम्मान अस्वीकार: अफवाहों के अनुसार, उन्होंने सरकार द्वारा प्रस्तावित पद्म पुरस्कार यह कहकर ठुकरा दिया कि वे जनजातीय समुदाय के साथ अपनी समानता बनाए रखना चाहते हैं (यह जानकारी आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं की गई है)।
महत्वपूर्ण संपर्क और सहयोग
- रघुराम राजन: उनके पूर्व छात्र और पूर्व आरबीआई गवर्नर
- श्रमिक आदिवासी संगठन: उनका सामाजिक कार्य का मंच
- अनुराग मोदी: साथी कार्यकर्ता जिन्होंने उनकी सच्चाई को मीडिया तक पहुंचाया
उनकी कहानी क्यों महत्वपूर्ण है?
- शिक्षा बनाम कर्म: आलोक सागर उन लोगों में हैं जो कहते नहीं, दिखाते हैं। वे गांव-गांव साइकिल से घूमते हैं, बीज बांटते हैं, पेड़ लगाते हैं और सादगी से रहते हैं—यही असली शिक्षा है।
- प्रकृति का संरक्षण: वनीकरण और सतत कृषि की उनकी पहलें आधुनिक पर्यावरणीय संकटों – जल संकट, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता क्षति – के खिलाफ एक मजबूत कदम हैं।
- सामाजिक समानता का संदेश: उनका जीवन एक सीधा सवाल पूछता है—क्या असली सफलता पैसे, पद और प्रतिष्ठा में है या उस बदलाव में जो हम ज़मीन पर लाते हैं?
निष्कर्ष
प्रोफेसर आलोक सागर का जीवन एक मौन लेकिन शक्तिशाली संदेश है—सच्चा परिवर्तन करुणा, त्याग और एक अलग राह चुनने की हिम्मत से शुरू होता है। जो लोग जीवन में उद्देश्य खोज रहे हैं, उनके लिए आलोक सागर की शांत लेकिन दृढ़ यात्रा सबसे गहरे सबक देती है।
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