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रक्षा गलियारों से रसोई तक: एक सच्ची दोस्ती की कहानी
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की जटिल दुनिया में, जहाँ दोस्ती अक्सर हथियारों और ऊर्जा सौदों पर बनती है, भारत और रूस ने अपनी स्थायी साझेदारी के लिए एक ताज़ा नई रेसिपी पेश की है। यह लड़ाकू विमानों या तेल के बैरलों के बारे में नहीं है; यह कुछ और भी मौलिक चीज़ के बारे में है – हमारे दैनिक भोजन में शामिल दाल। दोनों राष्ट्रों के बीच लंबे समय से चली आ रही दोस्ती ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान खींचा है, यह साबित करते हुए कि सच्चे सहयोगी न केवल युद्ध के समय में, बल्कि अपने लोगों का पेट भरने में भी एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
विश्वास की बंपर फसल: आँकड़े झूठ नहीं बोलते
हालिया रिपोर्टों ने दुनिया भर में हलचल मचा दी है, जिससे एक चौंकाने वाला विकास सामने आया है। रूस के संघीय एग्रोएक्सपोर्ट सेंटर के अनुसार, रूस ने भारत को दालों के निर्यात में अविश्वसनीय रूप से 25 गुना वृद्धि की है! 2025 में, भारत ने रूस से लगभग 9,46,600 टन दालें खरीदीं, जिनका मूल्य लगभग 460.9 मिलियन डॉलर (लगभग ₹38 अरब) था।
यह कोई एक बार की घटना नहीं है। 2024 में, रूस भारत को मटर का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता भी बन गया। इतिहास में पहली बार, रूस ने भारतीय बाजार के लिए शीर्ष पाँच कृषि निर्यातकों में अपनी जगह बनाई है। यह एक बहुत बड़ा बदलाव है जो साधारण व्यापार से कहीं आगे है; यह आपसी विश्वास का एक शक्तिशाली बयान है।
पृष्ठभूमि: क्यों दाल दोस्ती की नई कसौटी है
दशकों से, भारत-रूस संबंध स्थिरता का आधार रहे हैं, रक्षा सहयोग से लेकर साझा राजनयिक रुख तक। जब दुनिया ने रूस पर प्रतिबंध लगाए और उसे अलग-थलग करने की कोशिश की, तो भारत ने अपनी जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए और अपनी दोस्ती को बनाए रखते हुए दृढ़ता से खड़ा रहा। भारत ने रूसी तेल खरीदना जारी रखा, और अब, वह रूसी दाल खरीद रहा है।
यह अचानक वृद्धि क्यों हुई? रूस ने चतुराई से मटर, मसूर और चने जैसी दालों पर निर्यात शुल्क हटा दिया है, जिससे वे भारत के लिए अधिक किफायती हो गए हैं। इसके अलावा, रूस ने अपने कृषि क्षेत्र में भारी निवेश किया है और अब दालों की बंपर फसल काट रहा है। भारत के लिए, जो दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, अच्छी कीमत पर एक स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना एक बड़ी जीत है, खासकर खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए।
यह सिर्फ व्यापार नहीं है। ऐसे समय में जब रूस वैश्विक दबाव का सामना कर रहा है, भारत ने अपने सबसे आवश्यक बाजारों में से एक को खोल दिया है। यह विश्वास का एक ऐसा कार्य है जिसे राष्ट्रपति पुतिन शायद ही कभी भूलेंगे। यह दुनिया के लिए एक संदेश है: भारत अपनी दोस्ती का सम्मान करता है, खासकर जब हालात मुश्किल हों।
एक दोस्ती जो खाने की थाली तक पहुँचती है
इस सौदे को जो बात खास बनाती है, वह है इसका रोजमर्रा की जिंदगी पर सीधा असर। तेल की कीमतें और रक्षा सौदे दूर की बात लग सकते हैं, लेकिन दाल की उपलब्धता और कीमत भारत के हर घर को प्रभावित करती है। यह व्यापारिक साझेदारी यह सुनिश्चित करती है कि भारत भर की रसोइयों में इस प्रोटीन युक्त मुख्य भोजन की नियमित आपूर्ति हो।
यह एक राजनयिक मास्टरस्ट्रोक है। जहाँ दुनिया राजनीति पर बहस कर रही है, वहीं भारत और रूस लोगों की समृद्धि पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह दाल का व्यापार एक लेन-देन से कहीं ज़्यादा है; यह एक ऐसे रिश्ते का प्रतीक है जो परिपक्व, व्यावहारिक और आपसी सम्मान में गहराई से निहित है। यह दोस्ती, जो रणनीतिक हाथ मिलाने से शुरू हुई थी, अब खूबसूरती से आम आदमी की थाली तक पहुँच गई है।
सामाजिक संदेश: सच्चे रिश्ते, चाहे वे लोगों के बीच हों या राष्ट्रों के बीच, मुश्किल समय में परखे जाते हैं। वे केवल भव्य इशारों से ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे की बुनियादी ज़रूरतों के लिए शांत, निरंतर समर्थन से परिभाषित होते हैं। भारत-रूस की कहानी हमें सिखाती है कि सबसे मजबूत बंधन विश्वास और सभी के लिए शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने के साझा लक्ष्य की नींव पर बनते हैं।







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