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अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध में नाटकीय वृद्धि: चीन ने दी वैश्विक चेतावनी — “अगर बीजिंग के हितों को नुकसान पहुँचा, तो मिलेगा दृढ़ और पारस्परिक जवाब”। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध में एक बड़ा और नाटकीय मोड़ तब आया जब चीन ने दुनिया भर के देशों को एक कड़ी चेतावनी जारी की: यदि वे अमेरिका के साथ ऐसे व्यापार समझौते करते हैं जो बीजिंग के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं, तो उन्हें “दृढ़ और पारस्परिक” जवाबी कदमों का सामना करना पड़ेगा। यह बयान 21 अप्रैल 2025 को चीन के वाणिज्य मंत्रालय द्वारा दिया गया, जो उन रिपोर्टों की प्रतिक्रिया के रूप में आया है जिनमें कहा गया है कि अमेरिका विभिन्न देशों पर दबाव बना रहा है कि वे चीन के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को सीमित करें, बदले में उन्हें शुल्क राहत (tariff relief) दी जाएगी। जैसे-जैसे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ आमने-सामने आ रही हैं, वैसे-वैसे जापान, दक्षिण कोरिया और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) जैसे देश एक उच्च-दांव वाले आर्थिक रस्साकशी के बीच फंसते जा रहे हैं। यह लेख इस चेतावनी की व्याख्या करता है, इसके पीछे चल रहे व्यापारिक संघर्ष की पृष्ठभूमि को समझाता है और यह बताता है कि इसका वैश्विक व्यापार पर क्या असर पड़ सकता है।
प्रस्तावना:
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध एक नए मोड़ पर पहुँच गया है। 21 अप्रैल 2025 को चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक सख्त बयान जारी किया, जिसमें दुनिया भर के देशों को चेतावनी दी गई कि यदि वे अमेरिका के दबाव में आकर चीन के खिलाफ व्यापारिक कदम उठाते हैं, तो उन्हें कड़े जवाबी उपायों का सामना करना पड़ेगा। यह बयान ऐसे समय आया है जब खबरें हैं कि अमेरिका, देशों को चीन के साथ व्यापार सीमित करने के बदले शुल्क राहत देने का प्रस्ताव दे रहा है। दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के इस टकराव में जापान, दक्षिण कोरिया और ASEAN (दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का संगठन) जैसे देश बीच में फंस गए हैं। इस लेख में हम इस चेतावनी, इसके पीछे की पृष्ठभूमि और इसके वैश्विक व्यापार पर प्रभावों की विस्तार से चर्चा करेंगे।
पृष्ठभूमि: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध की शुरुआत 2018 में हुई, जब तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क लगा दिए। इसका कारण चीन की अनुचित व्यापार नीतियाँ बताई गईं, जैसे कि बौद्धिक संपदा की चोरी और बाज़ार तक सीमित पहुँच। जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगाए और बदले की कार्यवाही शुरू हो गई।
2025 तक यह संघर्ष चरम पर पहुँच गया। 2 अप्रैल को ट्रंप ने दर्जनों देशों से आयात पर भारी शुल्क लगाने की घोषणा की, लेकिन इनमें से अधिकांश देशों को अस्थायी राहत दी गई – सिवाय चीन के। चीन से आयात पर अब 145% तक शुल्क लागू है। इसके जवाब में चीन ने अमेरिका के उत्पादों पर 125% शुल्क लगाया, हॉलीवुड फिल्मों के आयात पर रोक लगाई, और कम से कम दो बोइंग विमानों को वापस अमेरिका भेज दिया।
यह व्यापार युद्ध वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर रहा है और बाजारों को अस्थिर बना रहा है। अमेरिका द्वारा एआई चिप्स के निर्यात पर प्रतिबंधों से Nvidia जैसी कंपनियों को $5.5 बिलियन का नुकसान हुआ है। वहीं, चीन-निर्मित जहाजों पर शुल्क लगाकर अमेरिका, चीन की जहाज निर्माण क्षमता को रोकना चाहता है।
चीन भी अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने के प्रयास तेज कर चुका है। अप्रैल 2025 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया का दौरा किया ताकि इन देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत किए जा सकें।
चीन की चेतावनी: इसका मतलब क्या है?
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने स्पष्ट कहा, “हम किसी भी पक्ष द्वारा चीन के हितों की कीमत पर सौदे करने का कड़ा विरोध करते हैं” और चेतावनी दी कि यदि कोई देश अमेरिका की शर्तें मानता है तो उन्हें कड़े जवाबी उपायों का सामना करना पड़ेगा।
इसका लक्ष्य उन देशों की ओर है जो अमेरिका द्वारा प्रस्तावित शुल्क छूट या रियायतों के लालच में चीन के खिलाफ कदम उठाने को तैयार हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका चाहता है कि देश चीनी आयातों को सीमित करें, चीनी कंपनियों को परियोजनाओं से बाहर करें, या तकनीकी हस्तांतरण को रोकें।
चीन की संभावित जवाबी कार्रवाई में उन देशों के निर्यात पर शुल्क, उनके लिए चीनी बाजार की पहुँच को सीमित करना, या अन्य आर्थिक दंड शामिल हो सकते हैं। मंत्रालय के प्रवक्ता ने ऐसे सौदों की तुलना “बाघ की खाल मांगने” से की – यह दर्शाते हुए कि ऐसे समझौते न सिर्फ संबंधित देशों को बल्कि वैश्विक व्यापार को भी नुकसान पहुँचाएंगे।
इसके अतिरिक्त, चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने की योजना बना रहा है, जिसमें वह अमेरिका पर “आर्थिक दबाव” का आरोप लगाएगा। इससे चीन की कूटनीतिक रणनीति भी स्पष्ट होती है।
अमेरिका की रणनीति: दबाव और टैरिफ का खेल
अमेरिका की रणनीति, चीन को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के लिए टैरिफ का उपयोग करना है। रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप प्रशासन 50 से अधिक देशों पर दबाव बना रहा है कि वे चीन के साथ व्यापार सीमित करें, बदले में उन्हें टैरिफ राहत दी जाएगी।
राष्ट्रपति ट्रंप ने एक स्पेनिश भाषा के फॉक्स न्यूज कार्यक्रम में कहा कि लैटिन अमेरिकी देशों को चीन और अमेरिका के निवेश के बीच चुनाव करना पड़ सकता है। वहीं, अमेरिका के ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने सुझाव दिया कि देश अमेरिका के साथ मिलकर समूह में चीन से बातचीत करें – हालांकि अभी तक कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई है।
अमेरिका ने अभी भी चीन पर उच्च शुल्क बनाए रखे हैं, जबकि अन्य देशों को राहत दी है – इससे साफ है कि यह एक लक्षित रणनीति है।
बीच में फंसे देश: चुनाव का संकट
ऐसे देश जो अमेरिका और चीन दोनों से घनिष्ठ व्यापारिक संबंध रखते हैं, उनके लिए स्थिति अत्यंत जटिल हो गई है। ASEAN (दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का संगठन), जिसमें 10 देश शामिल हैं, विशेष रूप से संवेदनशील है। 2021 में ASEAN का चीन के साथ व्यापार $878 बिलियन तक पहुँच गया था, जिससे वह उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। वहीं 2024 में अमेरिका-ASEAN व्यापार $477 बिलियन रहा।
इन देशों में से छह पर अमेरिका ने 32%-49% तक टैरिफ लगाए हैं, जिससे इनके निर्यात पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं को खतरा है।
जापान, अमेरिका से सोयाबीन और चावल का आयात बढ़ाने की योजना बना रहा है, जबकि इंडोनेशिया अमेरिकी खाद्य और वस्तुओं की खरीद बढ़ाने की योजना बना रहा है। लेकिन अमेरिका का साथ देने से चीन की नाराजगी का जोखिम बढ़ता है। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया के वस्त्र उद्योग को सस्ते चीनी आयात से पहले ही नुकसान हो चुका है – 2024 में 80,000 कर्मचारियों की छंटनी हुई और 2025 में 280,000 और नौकरियाँ खतरे में हैं।
दक्षिण कोरिया और ताइवान, जो अमेरिका के प्रमुख सहयोगी हैं, उन्होंने भी अमेरिका से व्यापार समझौते की बातचीत शुरू की है। 2025 में ISEAS-यूसुफ इशाक इंस्टीट्यूट के एक सर्वे में पाया गया कि 50% दक्षिण-पूर्व एशियाई उत्तरदाता, यदि मजबूर किया गया, तो अमेरिका का साथ देंगे – यह क्षेत्रीय दृष्टिकोण में बदलाव को दर्शाता है।
वैश्विक आर्थिक प्रभाव
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर खतरा है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि यह संघर्ष लंबा चला, तो इससे उपभोक्ता कीमतें बढ़ेंगी, आपूर्ति श्रृंखलाएँ बाधित होंगी और वैश्विक मंदी का खतरा उत्पन्न होगा।
अमेरिकी उपभोक्ताओं को चीनी वस्तुओं पर 145% टैरिफ के चलते वॉलमार्ट और अमेजन जैसे रिटेलरों पर कीमतों में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, चीनी शेयर बाजार अपेक्षाकृत स्थिर रहा है, जो निवेशकों की सतर्क मानसिकता को दर्शाता है।
इस संघर्ष के कारण कई कंपनियाँ दिवालिया हो चुकी हैं। जैसे कि ताइवान की LCD निर्माता कंपनी Chunghwa Picture Tubes को आपूर्ति अधिशेष और मूल्य गिरावट की वजह से दिवालिया घोषित किया गया। चीन ने अब अमेरिकी तेल आयात को 90% तक घटाकर कनाडा से आयात बढ़ा दिया है – यह व्यापार मार्गों के पुनर्गठन का उदाहरण है।
मौके की बात: विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों की राय विविध है। प्लेनम के बो झेंगयुआन ने कहा, “कोई भी पक्ष नहीं लेना चाहता”, यह दर्शाता है कि देश निवेश और प्रौद्योगिकी के लिए चीन पर निर्भर हैं। वहीं चीन मामलों की विशेषज्ञ एलिजाबेथ इकॉनमी का कहना है कि देशों के अमेरिका से आर्थिक हित जुड़े हैं, साथ ही वे चीन की सैन्य गतिविधियों – जैसे ऑस्ट्रेलिया के पास सैन्य अभ्यास और सेनकाकू द्वीपों पर तनाव – को लेकर भी चिंतित हैं।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, “व्यापार युद्ध और टैरिफ युद्ध में कोई विजेता नहीं होता”, और सहयोग की वकालत की।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन की सहनशक्ति और व्यापार विविधीकरण रणनीति उसे अमेरिकी दबाव से बचा सकती है। वहीं अन्य का मानना है कि अमेरिका के वैश्विक गठबंधनों के कारण उसके पास अधिक रणनीतिक ताकत है – हालांकि ट्रंप की आक्रामक रणनीति सहयोगियों को दूर कर सकती है।
हल्की-फुल्की बातें: ट्रेड वॉर के दिलचस्प किस्से
तनाव के बीच कुछ मजेदार किस्से भी सामने आ रहे हैं। चीन के यीवू शहर में एक एक्सपोर्टर जियांग जियायू, जो पार्टी पॉपर्स बनाते हैं, ने कहा, “अब तो जश्न भी टैक्स के नीचे आ गया है।”
वहीं चीन द्वारा हॉलीवुड फिल्मों पर रोक लगाने के बाद स्थानीय सिनेमा का कारोबार बढ़ गया है। बीजिंग के एक थिएटर मैनेजर ने मजाक में कहा, “स्पाइडर-मैन नहीं, लेकिन हमारे ड्रैगन बॉक्स ऑफिस पर कमाल कर रहे हैं।”
भविष्य की राह
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध अभी समाप्त होने के संकेत नहीं दे रहा है। चीन एशिया में अपने संबंध गहराने में जुटा है – 2023 में ASEAN के साथ उसका व्यापार $702 बिलियन तक पहुँचा।
वहीं अमेरिका संभावित समझौते को लेकर आशावादी है, और ट्रंप ने बातचीत की उम्मीद जताई है। लेकिन आगे का रास्ता राजनयिक प्रयासों और इस पर निर्भर करता है कि देश तटस्थ रह पाते हैं या पक्ष लेने को मजबूर हो जाते हैं।
जब देश अपनी रणनीतियाँ तय कर रहे हैं, तब वैश्विक अर्थव्यवस्था दाँव पर है। क्या कूटनीति जीत पाएगी या व्यापार युद्ध वैश्विक व्यापार को नया रूप देगा? इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा।
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