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प्राचीन भारतीय परंपराओं में सात चक्रों की अवधारणा को शरीर के महत्वपूर्ण ऊर्जा केंद्रों के रूप में वर्णित किया गया है, जो हमारे शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करते हैं। प्रत्येक चक्र का एक अनूठा संस्कृत नाम, रीढ़ की हड्डी में एक विशिष्ट स्थान, उससे जुड़ा तत्व और कार्य होता है। इसके अलावा, प्रत्येक चक्र को सक्रिय करने के लिए एक एकाक्षरी “बीज मंत्र” (bīja mantra) होता है और एक विशेष ध्वनि आवृत्ति (frequency in hertz) होती है जो उसकी कंपनात्मक ऊर्जा से मेल खाती है। इन मंत्रों का नियमित जाप और संबंधित ध्वनियों को सुनना चक्रों को शुद्ध, संतुलित और अवरुद्ध मुक्त करने में सहायक माना जाता है, जिससे सम्पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
प्राचीन उत्पत्ति और पृष्ठभूमि
चक्र सिद्धांत का उल्लेख पहली बार वेदों (लगभग 1500–500 ईसा पूर्व) में मिलता है, जो हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन पवित्र ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों में ऋषियों ने सूक्ष्म शरीर (subtle body) में ऊर्जा मार्गों (नाड़ी – nāḍī) और केंद्र बिंदुओं (चक्र – cakra) का वर्णन किया है। सदियों तक योगियों और तांत्रिक साधकों ने इन अवधारणाओं को ध्यान, मंत्र जाप और उपचार कलाओं में परिष्कृत किया। आधुनिक काल में विद्वानों ने चक्रों की ध्वनियों और मनोविज्ञान से मेल को समझने का प्रयास किया है, हालांकि इनकी वैज्ञानिक पुष्टि अभी प्रारंभिक स्तर पर ही है।
सात चक्रों की समझ
1. मूलाधार चक्र (Mulādhāra Chakra)
- स्थान और तत्व: रीढ़ की हड्डी के मूल में; पृथ्वी तत्व।
- कार्य: स्थिरता, सुरक्षा और भौतिक जुड़ाव का केंद्र।
- बीज मंत्र: “LAM” (लं) – इसका जाप मूलाधार को सक्रिय करता है और ऊर्जा को पृथ्वी से जोड़ता है।
- ध्वनि आवृत्ति: 396 Hz – भय और अपराधबोध को मुक्त करने से जुड़ा हुआ।
- अनुभव: योगाचार्या रुक्मिणी देवी ने एक बार मज़ाक में कहा था कि शुरुआती साधक अक्सर “LAM” जपते हुए सो जाते हैं – यह दिखाता है कि ग्राउंडिंग कितनी गहराई से आरामदायक हो सकती है!
2. स्वाधिष्ठान चक्र (Svādhiṣṭhāna Chakra)
- स्थान और तत्व: निचला पेट (नाभि के नीचे); जल तत्व।
- कार्य: भावनाओं, रचनात्मकता और कामुकता को नियंत्रित करता है।
- बीज मंत्र: “VAM” (वं) – भावनात्मक अवरोधों को पिघलाने में सहायक।
- ध्वनि आवृत्ति: 417 Hz – परिवर्तन और भावनात्मक शुद्धि को प्रेरित करता है।
- रोचक तथ्य: केरल के ओणम महोत्सव में, नर्तक प्रदर्शन से पहले “VAM” का जाप करते हैं ताकि उनकी रचनात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो सके।
3. मणिपुर चक्र (Maṇipūra Chakra)
- स्थान और तत्व: नाभि के ऊपर; अग्नि तत्व।
- कार्य: आत्मबल, आत्मविश्वास और व्यक्तिगत शक्ति का केंद्र।
- बीज मंत्र: “RAM” (रं) – आंतरिक अग्नि को प्रज्वलित करता है।
- ध्वनि आवृत्ति: 528 Hz – “प्रेम की आवृत्ति” मानी जाती है, डीएनए मरम्मत में भी उपयोगी।
4. अनाहत चक्र (Anāhata Chakra)
- स्थान और तत्व: ह्रदय क्षेत्र; वायु तत्व।
- कार्य: निचले और ऊपरी चक्रों के बीच पुल; प्रेम, करुणा और क्षमा का केंद्र।
- बीज मंत्र: “YAM” (यं) – ह्रदय को प्रेम के लिए खोलता है।
- ध्वनि आवृत्ति: 639 Hz – संबंधों और समुदायिक समरसता को बढ़ाता है।
5. विशुद्ध चक्र (Viśuddha Chakra)
- स्थान और तत्व: गला; आकाश तत्व।
- कार्य: अभिव्यक्ति, संप्रेषण और सत्य की अभिव्यक्ति।
- बीज मंत्र: “HAM” (हं) – वाणी और रचनात्मकता को स्पष्ट करता है।
- ध्वनि आवृत्ति: 741 Hz – कोशिकाओं और अंगों को शुद्ध करता है, सच्चाई की अभिव्यक्ति को बढ़ावा देता है।
6. आज्ञा चक्र (Ājñā Chakra)
- स्थान और तत्व: दोनों भौंहों के बीच; “मन”/प्रकाश तत्व।
- कार्य: अंतर्ज्ञान, ज्ञान और आंतरिक दृष्टि का केंद्र।
- बीज मंत्र: “OM” (ॐ) – सृष्टि की मूल ध्वनि मानी जाती है, जो भौतिक और आध्यात्मिक जगत को जोड़ती है।
- ध्वनि आवृत्ति: 852 Hz – अंतर्ज्ञान को जाग्रत करती है और आध्यात्मिक संतुलन को लौटाती है।
7. सहस्रार चक्र (Sahasrāra Chakra)
- स्थान और तत्व: सिर का शीर्ष; चेतना तत्व।
- कार्य: आत्मिक जुड़ाव, बोध और शुद्ध चेतना।
- बीज मंत्र: “OM” या मौन ध्यान – ध्वनि से परे जाकर ब्रह्मांडीय चेतना से एकत्व को दर्शाता है।
- ध्वनि आवृत्ति: 963 Hz – इसे “देवताओं की आवृत्ति” भी कहा जाता है, जो कोशिका पुनरुत्थान और आध्यात्मिक जागरण को प्रेरित करती है।
चक्र साधना का समन्वय (Integration of Chakra Practices)
पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए निम्न अभ्यास करें:
- दैनिक मंत्र जाप: प्रत्येक चक्र के लिए 3 मिनट का समय दें। मूलाधार से शुरू करें और ऊपर की ओर जाते हुए प्रत्येक बीज मंत्र को 108 बार जपें।
- ध्वनि ध्यान (Sound Meditation): निर्धारित आवृत्तियों की ध्वनियों को सुनें (उदाहरण: टोन-जनरेटर ऐप का उपयोग करें) ताकि आप रीढ़ की हड्डी के साथ सूक्ष्म कंपन महसूस कर सकें।
- दृश्य ध्यान (Visualization): हर चक्र के रंग (लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, इंडिगो, बैंगनी/सफेद) और स्थान की कल्पना करें तथा गहरी साँस लें।
- योग आसन: विशिष्ट चक्रों से मेल खाने वाले योग आसनों का अभ्यास करें – जैसे मूलाधार के लिए ताड़ासन, अनाहत के लिए भुजंगासन आदि।
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